काश बैतल की माटी में भी कोई मंगल - माधो - मलखान - फूलन या सीमा परिहार होती .........!''
लेख :- रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला''
आज बैतूल जिले की बारह लाख मतदाताओं की किस्मत पर तरस आने लगा है क्योकि उन्होने ऐसे जनप्रतिनिधि चुन कर भेजे है जो कि आज भी पूरे जिले के मान - सम्मान को गहरी ठेस लगने के बाद भी कुंभकरणी निद्रा में सोये हुये है . बैतूल जिले की माटी को शायद अब अपनी कोख पर भी तरस आने लगा होगा कि ''...क्यों उसने चम्बल के डाकू मंगल सिंह - मलखान सिंह - माधोसिंह की जगह मिटट् के माधो को जन्मा है....? क्यों बैतूल की उसकी बेटियां फूलनदेवी - सीमा सिंह परिहार की जगह मुरझाई हुई लता - न पढ़ी एवं सुनी जाने गीता और बुझती ज्योति बन गई है....? आज इन्ही लोगो के कारण बैतूल जिले के तीन सत्ताधारी विधायक और एक आदिवासी महिला सासंद भी नारी होने के बाद भी नारी का प्रतिक कही जाने वाली बैतूल जिले की जीवन दायनी मां सूर्य पुत्री ताप्ती को गौरव दिवस के अवसर पर प्रदेश का गौरव नहीं दिला सकी. बैतूल की माटी और छाती को तरस आता है कि बैतूल जिले के जनप्रतिनिधियों के अलावा तथाकथित समाज सेवको , स्वंयसेवी संगठनो की दुकानदारो और कथित कलम के सिपाहियों को भाट - चारण के रूप में देख कर पीड़ा हो रही होगी.....? आज बैतूल को प्रदेश के गौरव में सम्मान न मिलना पूरे जिले की जनता का भारी अपमान है. जिले के लोग प्रदेश की सरकार से कोई जमीन - जायजाद तो मांग नही रहे थे. जिले की ओर से एक मात्र यह प्रखर मांग उठ रही थी कि जिले की पुण्य सलिला मां ताप्ती को प्रदेश गान में मान और सम्मान मिले लेकिन बैतूल जिले के जनप्रतिनिधि शोले के गब्बर सिंह के चमचो की तरह खाली हाथ लौट आयें और ऊपर से भोपाल में ताप्ती रथ ले जाकर बचा - खुचा अपना जमीर गिरवी रख कर आ गये. बात किसी व्यक्ति विशेष की न होकर पूरी जमात की है. आज तक का इतिहास रहा है कि जब भी कोई रथ रवाना होता है चाहे वह भगवान सूर्य नारायण के द्वारा स्थापित अपने सूर्यवंशी में जन्मे मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम का अश्वमेघ रथ हो या फिर कृष्ण के सारथी के रूप में निकला मां ताप्ती के पुत्र कुरू द्वारा स्थापित कुरू वंश में जन्मे पांच पाडंवो का कुरूक्षेत्र में धर्मयुद्ध करने निकला रथ हो इतिहास और पुराण इस बात का गवाह है कि वे सभी खाली हाथ वापस नहीं लौटे है. बैतूल जिले की लोक संस्कृति को लेकर निकला भाजपाईयों का ताप्ती रथ प्रदेश के गौरव में अपना नाम तक नहीं जुडवा सका. बैतूल जिले के लिए इससे बडा शर्मनाक दिवस और क्या होगा जब बैतूल जिले की तीन महिला जनप्रतिनिधि अपने ही देश में देवी के रूप में पूजी जाने वाली नदी और नारी का सम्मान तक उसे दिलवा न सकी. आज बैतूल जिले के मानस पटल पर यह चित्र उभर कर आ गया है कि बैतूल जिले की माटी में उपजाऊ क्षमता नहीं रही. बैतूल जिले की माटी आज बंजर हो चुकी है. इस माटी की पीडा देख कर ऐसा लगता कि मां पूर्णा ऐसे ललना देने से तो अच्छा था कि वह बांझ ही रह जाती. इस लेख के माध्यम से हम जनता की भावना को अवगत करा रहे है कोई राष्ट्रद्रोह नहीं कर रहे है. सोते हुये को जगाना और उसे काम पर लगाना अच्छे संस्कार माने जाते है. परम पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री राम शर्मा कहते थे कि ''नहीं नारी का सम्मान जहां , धर्म नहीं पाखण्ड वहां . बैतूल जिले के बारे में एक प्राचिन कथा याद आती है कि भगवान परसुराम ने अपने पिता के क्रोध वश परीक्षा स्वरूप दिये गये आदेश पर अपनी मां रेणुका का सिर तक काट दिया था लेकिन जब पिता ने उससे कहा कि बेटा ''मैं मेरी पितृ भक्ति से प्रसन्न हूं क्या इच्छा या वर मांगते हो मांग लो.....! तब परसुराम ने कहा था कि आप पुन: मेरी माता के कथित भूलवश हुये अपराध को क्षमा करके उन्हे पुन: जीवनदान दे. पुत्र को दिये गये वचनो का मान रख कर ऋषि ने मां रेणुका के कटे हुये सिर को जोड कर उसे पुन: जीवनदान दिया. यहां तो बैतूल जिले में ऐसी कोई घटना ही नहीं घटी कि बैतूल जिले के भाजपाई भोपाल जाकर अपना सिर कटवाने के बचाय अपनी नाक ही कटवा कर आ गये. रामायण में भी सूर्पनाखा ने दशरथ पुत्र की मोहनी सूरत को पति के रूप में पाने की अभिलाषा के चलते अपनी नाक कटवा ली थी लेकिन बैतूल के भाजपाई स्वंय को न तो राम का मानते और न रावण का क्योकि यदि वे दोनो में से किसी भी एक का होते तो अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते लेकिन मान - सम्मान के लिए किसी प्रकार का समझौता या संधि नहीं करते. रामायण में बार - बार इस बात का जिक्र हुआ है कि रावण के पास संधि के लिए कई बार राम ने दूतो को भेजा लेकिन रावण ने समझौता या संधि नहीं की और वे अंत तक लड़े . रावण के बारे में कहा जाता है कि वह महापंडित ही नहीं बल्कि भविष्य का जानकार था उसे मालूम था कि भगवान स्वंय धरती पर उसका उद्धार करने आये है इसलिए हाथ आये मौके को न छोडा जाये. बैतूल जिले के जनप्रतिनिधि लाल बत्ती की लालसा में - फर्जी जाति प्रमाण पत्र के नतीजे के डर से या फिर चौथिया कांड में जेल जाने के डर से सत्ता के सामने अपनी सियासत की गोटी को बिछा नहीं सके. जिले के मान सम्मान को पहुंची ठेस के लिए अकेली भाजपा ही नहीं बल्कि विपक्ष की भुमिका निभाने वाली कांग्रेस भी लगता है कि डां अशोक साबले की अस्थियों के साथ ताप्ती में विर्सजीत हो गई. आज जिले में कोई भी गैर कांग्रेसी या भाजपाई भी मां ताप्ती के मान - सम्मान के लिए बैनर - झण्डे और डण्डे के साथ नहीं आया है. ऐसे में ऐसा लगता है कि जल - जमीन और जंगल की तरह लडाई लडने वाले अनुराग - शमीम और मंगल भी जिले के मानचित्र से ताप्ती के सवाल पर वैताल की तरह गायब हो गये है. इन सबसे हट कर सोचने लायक बात यह है कि आज के शिवराज सिंह चौहान से उन्हे तो कोई भी बचा लेगा लेकिन उस त्रिकालदर्शी भगवान आशुतोष शिव के शिष्य , सूर्य नारायण के पुत्र - मां ताप्ती के भाई न्याय के देवता शनिदेव की वक्रदृष्टि से उन्हे कौन बचायेगा....? अपनी बहन के अपमान को लेकर कहीं यदि शनिदेव नाराज हो गये तो उस राजा भोज को गंगू तेली के पास नौकरी करनी पड़ी थी लेकिन आज के सत्ताधारी राजाओ को तो गंगू तेली भी नहीं मिलेगा क्योकि आजकल न तो उस समय तेली रहे और न कोल्हू ....? ऐसे में डागा जी की तेल फैक्टरी में इन राजाओं को काम मिलेगा या भी नहीं सब तो नीरज बाबू पर निर्भर करता है. कहने का मतलब साफ है कि शनि वैसे भी बैतूल जिले के अधिकांश नेताओं पर चौथिया कांड - जाति प्रमाण पत्र कांड जैसे कई मामलो पर अपनी वक्र दृष्टि लगाने जा रहा है. मां ताप्ती और न्याय के देवता भगवान शनि कहीं रूष्ट होकर ऐसा कर देगें तो बैतूल जिले के ही नहीं पडौसी हरदा जिले के नेताजी तक लम्बी अवधि तक जेल यात्रा पर निकल जायेगें तब उनके पास कोई काम नहीं होगा और फिर हम जैसे दो चार ताप्ती भक्त तापती पुराण भेट करेगें और निवेदन करेगें कि लम्बी अवधि के कारावास में जब तक जमानत न हो ताप्ती पुराण जरूर पढ़े. हालाकि मैं उन लोगो को भी याद दिला दूं कि ऐसा नहीं कि वे ही जेल जा रहे है मैं भी दो - तीन बार होकर आ गया हँू लेकिन मैंने जेल के बाहर ही ताप्ती महात्म और शनि देव के बारे में इतना पढ़ा है कि मैं आज इतने जादू - टोने - टोटके के बाद भी जिंदा हँू मेरा न तो जमीर मरा है और न मर पायेगा. एक स्थिति मैं अपनी ओर से स्पष्ट कर देना चाहता हँू कि मेरा जिले के किसी भी जनप्रतिनिधि से व्यक्तिगत कोई बैर नहीं है और न मैं रखना चाहता हँू क्योकि किसी नहीं बल्कि मेरी अतंरआत्मा ने मुझसे कहा है कि ''रामू तू न मारे काहँू'' को दुश्मन खुद मर जाये बोल ताप्ती मैया की जय .....!मैं अपने मान - सम्मान की बात नहीं करता क्योकि मेरा अपना कोई मान - सम्मान नहीं है ...? आजकल मान - सम्मान तो बेचे एवं खरीदे जाते है. मान सम्मान मिलता है इसलिए मै और मेरी पूरी मित्र मण्डली मां ताप्ती के श्रद्धालु भक्तो की टोली रात दिन बस यही प्रार्थना करती है कि हे मां ताप्ती आपको भी वह मान -सम्मान मिले जो न्यायोचित है. अकसर आपने आन्दोलनकारियों को एक नारा लगाते सुना होगा कि ''नहीं किसी से भीख मांगते हम तो अपना अधिकार मांगते.....! आज बैतूल जिले की लगभग बीस लाख जनता की भी यही मूल भावना होगी कि उसके साथ उसका पूरा प्रदेश सरकारी स्कूलो में यह गा सके कि ''तेरा वैभव रहे अमर मां हम दिन चार रहे न रहे .....! मां ताप्ती के वैभव को अमर करने के लिए हम विचार क्रंाति की लडाई लड़ रहे है. हो सकता है कि हमारा प्रयास किसी को अच्छा तथा किसी को बुरा भी लगे लेकिन सच्चाई सोलह आने सच है कि हमें अपनी माटी का और मां ताप्ती के आंचल से बह रहे अमृत रूपी जल का कर्ज अदा करना है तो सभी को एक स्वर में कहना होगा कि ''ताप्ती मैया मेरी सदा जय हो .....!''
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